प्यास दिल में है बला की पास पर दरिया नहीं ।
क्या तड़प है कि सुकूँ का एक भी लम्हा नहीं ।
जिस्म छू कर तो कई ज़ज़्बात लौटे हैं मगर
एक भी अहसास मेरी रूह तक पंहुचा नहीं।
शायरी हिंदी चुटकुले Best shayari collection ghazal sher Sherkavi kavita pad gam ke fasane dost mohabbat judai gulzar galib
गुरुवार, 3 दिसंबर 2015
प्यास दिल में है
छोटे थे हर बात भूल जाया
छोटे थे हर बात भूल जाया करते थे
दुनिया कहती थी याद करना सीखो
अब हर बात याद रहती है
दुनिया कहती है भूलना सिखो ।
सुबह जल्दी उठाने
सुबह जल्दी उठाने सात बजे को आठ कहती
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है ,
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती
छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है ..........माँ बड़ा झूठ बोलती है
थाल भर खिलाकर तेरी भूख मर गयी कहती है
जो मैं न रहू घर पे तो मेरे पसंद की
कोई चीज़ रसोई में उनसे नही पकती है ,
मेरे मोटापे को भी कमजोरी की सूज़न बोलती है .........माँ बड़ा झूठ बोलती है
दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए बोल कर
एक मेरे नाम दस लोगो का खाना भरती है,
कुछ नही-कुछ नही, बोल नजर बचा बैग में
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है .....माँ बड़ा झूठ बोलती है
टोका टाकी से जो मैं झुंझला जाऊ कभी तो ,
समझदार हो अब न कुछ बोलूंगी मैं,
ऐसा अक्सर बोलकर वो रूठती है
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है ....माँ बड़ा झूठ बोलती है
तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाउंगी ,
सारी फिल्मे तो टी वी पे आ जाती है ,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है
बहानो से अपने पर होने वाले खर्च टालती है ....माँ बड़ा झूठ बोलती है
मेरी उपलब्द्धियो को बढ़ा चढ़ा कर बताती
सारी खामियों को सब से छिपा लेती है
उनके व्रत ,नारियल,धागे ,फेरे मेरे नाम
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है .... माँ बड़ा झूठ बोलती है
भूल भी जाऊ दुनिया भर के कामो में उलझ
उनकी दुनिया मैं वो मुझे कब भूलती है, ?
मुझ सा सुंदर उन्हें दुनिया में ना कोई दिखे
मेरी चिंता में अपने सुख भी नही भोगती है .........माँ बड़ा झूठ बोलती है
मन सागर मेरा हो जाए खाली ऐसी वो गागर
जब पूछो अपनी तबियत हरी बोलती है ,
उनके ‘जाये” है, हम भी रग रग जानते है
दुनियादारी में नासमझ वो भला कहाँ समझती है .........माँ बड़ा झूठ बोलती है ....
उनकी फैलाए सामानों से जो एक उठा लू
खुश होती जैसे उन पे उपकार समझती है ,
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे गहरी उदासी
सोच सोच अपनी तबियत का नुक्सान सहती है ....माँ बड़ा झूठ बोलती है ...
यूँ ही "उम्मीद"
यूँ ही "उम्मीद" दिलाते हैं "ज़माने" वाले;
कब "लौट" के आते हैं "छोड़" कर जाने वाले।
"मंजिलों" से गुमराह भी
"मंजिलों" से गुमराह भी
कर देते हैं कुछ लोग,
हर किसी से, रास्ता पूछना,
अच्छा नहीं होता...!
बुधवार, 2 दिसंबर 2015
रोज तारीख बदलती. है,
रोज तारीख बदलती. है,
रोज. दिन. बदलते. हैं....
रोज. अपनी. उमर. भी बदलती. है.....
रोज. समय. भी बदलता. है...
हमारे नजरिये. भी. वक्त. के साथ. बदलते. हैं.....
बस एक. ही. चीज. है. जो नहीं. बदलती...
और वो हैं "हम खुद"....
और बस ईसी. वजह से हमें लगता है. कि. अब "जमाना" बदल गया. है........
किसी शायर ने खूब कहा है,,
रहने दे आसमा. ज़मीन कि तलाश. ना कर,,
सबकुछ। यही। है, कही और तलाश ना कर.,
हर आरज़ू पूरी हो, तो जीने का। क्या। मज़ा,,,
जीने के लिए बस। एक खूबसूरत वजह। कि तलाश कर,,,
ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,,
अपने अपने हिस्से कि। "दोस्ती" निभाएंगे,,,
बहुत अच्छा लगेगा ज़िन्दगी का ये सफ़र,,,
आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,,,
क्या भरोसा है. जिंदगी का,
इंसान. बुलबुला. है पानी का,
जी रहे है कपडे बदल बदल कर,,
एक दिन एक "कपडे" में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर,,
शुक्रवार, 27 नवंबर 2015
माँ
माँ
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो कभी ख़फ़ा नहीं होती
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इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
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मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना
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ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया
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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई
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मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
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अभी ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
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