हुस्न के जो ये नज़ारे नहीं होते
हम ये दिल कभी हारे नहीं होते।
चढ जाते जो सबके होठों पर
वो गीत फिर कंवारे नहीं होते।
तमाम नफ़रतों के बलबलों में
इश्क करने वाले सारे नहीं होते।
मात खायी है हमने तो हर्ज़ नहीं
प्यार करने वाले बेचारे नहीं होते।
जो जगमगाते हरदम उंचाई से
सब के सब सितारे नहीं होते।
दीखते दूर से मौजों के पार जो
ठहरे हुए सब किनारे नहीं होते।
इस दिल को यकीन ही था कब
कि लूटने वाले सहारे नहीं होते।
देना था दगा एक रोज आखिर
दोस्त, काश हम तुम्हारे नहीं होते।
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