शुक्रवार, 17 जून 2016

ज़रा सी ज़िन्दगी में

ज़रा सी ज़िन्दगी में, व्यवधान बहुत हैं ,
तमाशा देखने को, यहां इंसान बहुत हैं !

कोई भी नहीं बताता ठीक रास्ता यहां,
अजीब से इस शहर में, नादान बहुत हैं !

न करना भरोसा भूल कर भी किसी पे,
यहां हर गली में यारो, बेईमान बहुत हैं

! दौड़ते फिरते हैं न जाने क्या पाने को,
लगे रहते हैं जुगाड़ में, परेशान बहुत हैं !

ख़ुद ही बनाते हैं हम पेचीदा ज़िंदगी को,
वरना तो जीने के नुस्ख़े, आसान बहुत हैं !

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