चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
(राष्ट्र कवी मैथिलि शरण गुप्त )
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चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
(राष्ट्र कवी मैथिलि शरण गुप्त )
सपने मे अपनी मौत को करीब से देखा....
कफ़न में लिपटे तन जलते अपने शरीर को देखा.....
खड़े थे लोग हाथ बांधे एक कतार में...
कुछ थे परेशान कुछ उदास थे .....
पर कुछ छुपा रहे अपनी मुस्कान थे..
दूर खड़ा देख रहा था मैं ये सारा मंजर.....
.....तभी किसी ने हाथ बढा कर मेरा हाथ थाम लिया ....
और जब देखा चेहरा उसका तो मैं बड़ा हैरान था.....
हाथ थामने वाला कोई और नही...मेरा भगवान था...
चेहरे पर मुस्कान और नंगे पाँव था....
जब देखा मैंने उस की तरफ जिज्ञासा भरी नज़रों से.....
तो हँस कर बोला....
"तूने हर दिन दो घडी जपा मेरा नाम था.....
आज प्यारे उसका क़र्ज़ चुकाने आया हूँ...।"
रो दिया मै.... अपनी बेवक़ूफ़ियो पर तब ये सोच कर .....
जिसको दो घडी जपा
वो बचाने आये है...
और जिन मे हर घडी रमा रहा
वो शमशान पहुचाने आये है....
तभी खुली आँख मेरी बिस्तर पर विराजमान था.....
कितना था नादान मैं हकीकत से अनजान था....
आहिस्ता चल ऐ ज़िन्दगी, कुछ क़र्ज़ चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है;
रफ्तार में तेरे चलने से , कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ;
रूठों को मनाना बाकी है, रोतों को हंसाना बाकी है ;
कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ; ख्वाहिशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना बाकी है ;
कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए; उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;
इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है ; आहिस्ता चल ऐ जिंदगी , कुछ क़र्ज़ चुकाना बाकी है.
निराश नहीं हुआ हूँ जिन्दगी में,
मुझे अभी बहुत से काम है.
आँखे आज भी खोजती है,
उस कमीने को .....
जिसने कहा था के....
शादी के बाद बहुत आराम है...!!!!
हर रास्ता एक सफ़र चाहता है,
हर मुसाफिर एक हमसफ़र चाहता है
जेसे चाहती है चांदनी चाँद को
कोई है जो आपको इस कदर चाहता है
यूँ खाली पलकें झुका देने से नींद नही आती
सोते वही लोग है
जिनके पास किसी की यादें नही होती।
अब तो मर जाता है रिश्ता ही बुरे वक्तों में।
पहले मर जाते थे रिश्तों को निभाने वाले।।
-शकीलआज़मी