गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

राष्ट्र कवी मैथिलि शरण गुप्त

चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥

(राष्ट्र कवी मैथिलि शरण गुप्त )

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