शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

ख़्वाहिशों से नहीं गिरते महज़ फूल झोली में,

ख़्वाहिशों से नहीं गिरते महज़ फूल झोली में,
कर्म की शाख को हिलाना होगा।
न होगा कुछ कोसने से अंधेरें को,
अपने हिस्से का 'दीया खुद ही जलाना होगा।
पर्व है पुरुषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप एक जलता रहे,
अंधकार से युद्ध यह चलता रहे,
हारेगी हर बार अंधियारे की
घोर-कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की
स्वर्ण-लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,
कायम रहे इसका अर्थ, वरना
व्यर्थ है,
आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए!!
झिलमिल रोशनी में निवेदित
अविरल शुभकामना
आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगल भावना!!!
"शुभ दीपावली"

शनिवार, 7 नवंबर 2015

कुछ रूठे हुए लम्हें

कुछ रूठे हुए लम्हें कुछ टूटे हुए रिश्ते हर कदम पर काँच बन कर जख्म देते है !!

मौसम की तरह बदलते हें उसके वादे..
उपर से ये ज़िद के तुम मुझपे एतबार करो..

अगर दिल टूटे तो मेरे पास चले आना...

अगर दिल टूटे तो मेरे पास चले आना...!!
मुझे बिखरे हुए लोगो से मोहब्बत बहूत है...!!

याद करने की हम ने हद कर दी मगर,
भूल जाने में तुम भी कमाल करते हो..

मेरा यूँ टुटना और टूटकर बिखर जाना

मेरा यूँ टुटना और टूटकर बिखर जाना
कोई इत्फाक नहीं....
किसी ने बहुत कोशिश की है
मुझे इस हाल तक पहुँचाने में.

तकदीर ने यह कहकर, बङी तसल्ली दी है मुझे
कि वो लोग तेरे काबिल ही नहीं थे,जिन्हें मैंने
दूर किया है..!!

जिनकी आंखें आंसू से नम नही

जिनकी आंखें आंसू से नम नहीं
क्या समझते हो उसे कोई गम नहीं
तुम तड़प कर रो दिये तो क्या हुआ
गम छुपा के हंसने वाले भी कम नहीं

मेरा यूँ टुटना और टूटकर बिखर जाना
कोई इत्फाक नहीं ....
किसी ने बहुत कोशिश की है
मुझे इस हाल तक पहुँचाने में.

खुदा जाने कौनसा गुनाह कर बैठे हैं हम।

खुदा जाने कौनसा गुनाह कर बैठे हैं हम।
तमन्नाओं वाली उम्र में तज़ुर्बे मिल रहे हैं।।

छोड दिया है किस्मत की लकीरों पर यकीन करना;

जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज है

मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ

बशीर बद्र

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

खामोशियों को सुनते है..

यूँ तो बातें बहुत सारी है
कहने को, लेकिन…
चलो आज देर तक,
खामोशियों को सुनते है..