सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह

बच न सका ख़ुदा भी मोहब्बत के तकाज़ों से,
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला..

ये मुस्कुराता चेहरा, ये लफ़्जो की शरारत, ये शायरना अन्दाज,,,
कौन कहता है मोहब्बत दिखाई नही देती !!

वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह
जैसे रात में फूलों पे गिरती हैं शबनम
जैसे शमा से मिलते हैं मासूम परवाने
जैसे दिल की साज पे छेडे कोई सरगम

वो अक्सर मुझसे पूछा करती थी

वो अक्सर मुझसे पूछा करती थी, तुम मुझे कभी छोड़ कर तो नहीं जाओगे,
काश मैंने भी पूछ लिया होता..

भीड़ इतनी तो ना थी शहर के बाज़ारों में,
मुझे खोने वाले तुने कुछ देर तो ढूँढा होता..

अभी तक मौजूद हैं इस दिल पर तेरे कदमों के निशान,
हमने तेरे बाद किसी को इस राह से गुजरने नहीं दिया…

भीड़ इतनी तो ना थी शहर के बाज़ारों में

भीड़ इतनी तो ना थी शहर के बाज़ारों में,
मुझे खोने वाले तुने कुछ देर तो ढूँढा होता..

अभी तक मौजूद हैं इस दिल पर तेरे कदमों के निशान,
हमने तेरे बाद किसी को इस राह से गुजरने नहीं दिया…

पागल नहीँ थे हम जो तेरी हर बात मानते थे...
बस तेरी खुशी से ज्यादा कुछ अच्छा ही नहीँ लगता था..!!

खेली इश्क़ की बाज़ी

आईने में भी खुद को झांक कर देखा,
खुद को भी हमने तनहा करके देखा,
पता चल गया हमें कितनी मोहब्बत है आपसे,
जब तेरी याद को दिल से जुदा करके देखा.

तुम बेवफा नहीं यह तो धड़कनें भी कहती हैं,
अपनी मजबूरियों का एक पैगाम तो भेज देते ..

उसने इस कमाल से खेली इश्क़ की बाज़ी,
मैं अपनी फतह समझता रहा मात होने तक…

जाने क्यूं - अब मस्त मौला मिजाज नही होते..!

जाने क्यूं - अब शर्म से, चेहरे गुलाब नही होते..
जाने क्यूं - अब मस्त मौला मिजाज नही होते..!

पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें..
जाने क्यूं- अब चेहरे, खुली किताब नही होते..!

सुना है, बिन कहे दिल की बात समझ लेते थे..
गले  लगते ही,  दोस्त हालात समझ लेते थे.......!

जब ना फेस बुक था न व्हाटस एप था,न मोबाइल थे..
एक चिट्ठी से ही, दिलों के जज्बात समझ लेते थे...!!

सोचता हूँ,
हम कहां से कहां आ गये..
प्रेक्टीकली सोचते सोचते,
भावनाओं को खा गये...!

अब भाई भाई से
समस्या का समाधान कहां पूछता है..
अब बेटा बाप से
उलझनों का निदान कहां पूछता है...!

बेटी नही पूछती
मां से गृहस्थी के सलीके..
अब कौन गुरु के चरणों में बैठकर
ज्ञान की परिभाषा सीखे...!

परियों की बातें, अब किसे भाती है..
अपनो की याद, अब किसे रुलाती है..!

अब कौन
गरीब को सखा बताता है..
अब कहां
कृष्ण सुदामा को गले लगाता है..!

जिन्दगी में
हम प्रेक्टिकल हो गये है..
रोबोट बन गये हैं सब
इंसान जाने कहां खो गये है...!!