सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह

बच न सका ख़ुदा भी मोहब्बत के तकाज़ों से,
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला..

ये मुस्कुराता चेहरा, ये लफ़्जो की शरारत, ये शायरना अन्दाज,,,
कौन कहता है मोहब्बत दिखाई नही देती !!

वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह
जैसे रात में फूलों पे गिरती हैं शबनम
जैसे शमा से मिलते हैं मासूम परवाने
जैसे दिल की साज पे छेडे कोई सरगम

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