गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

दिल को झकझोरने वाली बिटिया की विदाई कविता ǃ

दिल को झकझोरने वाली बिटिया की विदाई कविता ǃ
कभी न रोने वाला बापू,फूट फूट कर रोया है |
कन्यादान हुआ जब पूरा,आया समय विदाई का ।।
हँसी ख़ुशी सब काम हुआ था,सारी रस्म अदाई का ।
बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया ।।
पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में छोड़ दिया ।।
अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा कहा तुमने ।।
मेरे रोने को पल भर भी ,बिल्कुल नहीं सहा तुमने ।।
क्या इस आँगन के कोने में, मेरा कुछ स्थान नहीं ।।
अब मेरे रोने का पापा,तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं ।।
देखो अन्तिम बार देहरी,लोग मुझे पुजवाते हैं ।।
आकर के पापा क्यों इनको,आप नहीं धमकाते हैं।।
नहीं रोकते चाचा ताऊ,भैया से भी आस नहीं।।
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है,कोई आता पास नहीं।।
बेटी की बातों को सुन के ,पिता नहीं रह सका खड़ा।।
उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा दौड़ पड़ा ।।
कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी ।।
जैसे यादों के अक्षर वह,अश्रु बिंदु से धोती थी ।।
माँ को लगा गोद से कोई,मानो सब कुछ छीन चला।।
फूल सभी घर की फुलवारी से कोई ज्यों बीन चला।।
छोटा भाई भी कोने में,बैठा बैठा सुबक रहा ।।
उसको कौन करेगा चुप अब,वह कोने में दुबक रहा।।
बेटी के जाने पर घर ने,जाने क्या क्या खोया है।।
कभी न रोने वाला बापू,फूट फूट कर रोया है*

मिली थी जिन्दगी


             मिली थी जिन्दगी
      किसी के 'काम' आने के लिए..

           पर वक्त बित रहा है
     कागज के टुकड़े कमाने के लिए..
                              
   क्या करोगे इतना पैसा कमा कर..?
ना कफन मे 'जेब' है ना कब्र मे 'अलमारी..'

       और ये मौत के फ़रिश्ते तो
           'रिश्वत' भी नही लेते...
खुदा की मोहब्बत को फना
कौन करेगा?
सभी बंदे नेक तो गुनाह
कौन करेगा?

"ए खुदा मेरे इन दोस्तो को
सलामत रखना...वरना मेरी
सलामती की दुआ कौन करेगा ?

और रखना मेरे दुश्मनो को
भी मेहफूस ...
वरना मेरी  तेरे पास आने की
दुआ कौन करेगा ?"

खुदा ने मुझसे कहा
"इतने दोस्त ना बना तू ,
धोखा खा जायेगा"

मैने कहा "ए खुदा , तू  ये
मेसेज पढनेवालो से मिल तो सही ,
तू भी धोखे से दोस्त बन
जायेगा ."
नाम छोटा है मगर दिल बडा रखता हु | |

पैसो से उतना अमीर नही हु | |

मगर अपने यारो के गम खरिद ने की हैसयत रखता हु | | |

मुझे ना हुकुम का ईक्का बनना है  ना रानी का बादशाह । हम जोकर ही अच्छे हे। जिस के नसीब में आऐंगे बाज़ी पलट देंगे।♣♥♠♦

राष्ट्र कवी मैथिलि शरण गुप्त

चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झूम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥

(राष्ट्र कवी मैथिलि शरण गुप्त )

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

नादान मैं हकीकत से अनजान

सपने मे अपनी मौत को करीब से देखा....

कफ़न में लिपटे तन जलते अपने शरीर को देखा.....

खड़े थे लोग हाथ बांधे एक कतार में...

कुछ थे परेशान कुछ उदास थे .....

पर कुछ छुपा रहे अपनी मुस्कान थे..

दूर खड़ा देख रहा था मैं ये सारा मंजर.....

.....तभी किसी ने हाथ बढा कर मेरा हाथ थाम लिया ....

और जब देखा चेहरा उसका तो मैं बड़ा हैरान था.....

हाथ थामने वाला कोई और नही...मेरा भगवान था...

चेहरे पर मुस्कान और नंगे पाँव था....

जब देखा मैंने उस की तरफ जिज्ञासा भरी नज़रों से.....

तो हँस कर बोला....
"तूने हर दिन दो घडी जपा मेरा नाम था.....
आज प्यारे उसका क़र्ज़ चुकाने आया हूँ...।"

रो दिया मै.... अपनी बेवक़ूफ़ियो पर तब ये सोच कर .....

जिसको दो घडी जपा
वो बचाने आये है...
और जिन मे हर घडी रमा रहा
वो शमशान पहुचाने आये है....

तभी खुली आँख मेरी बिस्तर पर विराजमान था.....
कितना था नादान मैं हकीकत से अनजान था....

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

आहिस्ता चल ऐ ज़िन्दगी, कुछ क़र्ज़ चुकाना बाकी है

आहिस्ता चल ऐ ज़िन्दगी, कुछ क़र्ज़ चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है;

रफ्तार में तेरे चलने से , कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ;
रूठों को मनाना बाकी है, रोतों को हंसाना बाकी है ;

कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ; ख्वाहिशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना बाकी है ;

कुछ रिश्ते बनके टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए; उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है ;

इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है ; आहिस्ता चल ऐ जिंदगी , कुछ क़र्ज़ चुकाना बाकी है.

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

निराश  नहीं  हुआ  हूँ  जिन्दगी में,

निराश  नहीं  हुआ  हूँ  जिन्दगी में,
मुझे  अभी  बहुत से  काम है.

आँखे  आज भी  खोजती है,
उस  कमीने  को .....
जिसने  कहा था के....
शादी के बाद  बहुत  आराम है...!!!!

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

हर रास्ता एक सफ़र चाहता है

हर रास्ता एक सफ़र चाहता है,
हर मुसाफिर एक हमसफ़र चाहता है
जेसे चाहती है चांदनी चाँद को
कोई है जो आपको इस कदर चाहता है