गुरुवार, 5 नवंबर 2015

कब दिल पत्थर का हो जाता ह

मशवरा तो देते रहते हो.. .....खुश रहा करो...

कभी कभी वजह भी दे दिया करो...

जब भी अच्छे की शुरूआत होती है थोडा दर्द होता है।
समन्दर मे मोती यूं ही किनारे पर नही मिलता है...!!

इतनी धूल और सीमेंट है
शहरों की हवाओं में आजकल.
.
कब दिल पत्थर का हो जाता है
पता ही नहीं चलता…..

दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले

दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले,
हम अपने बुज़ुर्गों का ज़माना नहीं भूले,
तुम आँखों की बरसात बचाये हुये रखना,
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले,

वक्त की गर्दिश

मुझे मालूम था था की वो रास्ते  मेरी मंजिल तक नहीँ जाते थे,  फिर भी मै चलता रहा क्योंकि उस राह में कुछ अपनों के घर भी आते थे।

न रुकी वक्त की गर्दिश और न ही जमाना बदला...

जब पेड़ सूखा तो परिन्दों ने भी अपना ठिकाना बदल लिया....

कुछ मजबूरीयाँ भी होती है, घर से निकलने की,

राह में घूमता हर शख्स "आवारा" नही होता...!!!

बुधवार, 4 नवंबर 2015

पुराना इतवार

Gulzaar Sahib

"आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर पुराना इतवार मिला है.........

जाने क्या ढूँढने खोला था
उन बंद दरवाजों को,
अरसा बीत गया सुने,
उन धुंधली आवाजों को,
यादों के सूखे बागों में,
जैसे एक गुलाब खिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला है........

कांच के एक डिब्बे में कैद,
खरोचों वाले कुछ कंचे,
कुछ आज़ाद इमली के दाने,
इधर उधर बिखरे हुए,
मटके का इक चौकोर,
लाल टुकड़ा,
पड़ा बेकार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है......

एक भूरे रंग की पुरानी कॉपी,
नीली लकीरों वाली,
कुछ बहे हुए नीले अक्षर
उन पुराने भूरे पन्नों में,
स्टील के जंग लगे, शार्पनर में,पेंसिल का,
एक छोटा टुकड़ा गिरफ्तार मिला है।

आज मुझे उस बूढी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है...

बदन पर मिट्टी लपेटे
एक गेंद पड़ी है,
लकड़ी का एक बल्ला
भी है,
जो नीचे से छिला
छिला है,
बचपन फिर से आकर
मानो साकार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है.........

एक के ऊपर एक पड़े,
माचिस के कुछ खाली डिब्बे,
बुना हुआ एक
फटा सफ़ेद स्वेटर,
जो अब नीला नीला है,
पीला पड़ चुका झुर्रियों वाला
एक अखबार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है.........

गत्ते का एक चश्मा है,
पीली प्लास्टिक वाला,
चंद खाली लिफ़ाफ़े,
बड़ी बड़ी डाक टिकिटों वाले,
उन खाली पड़े लिफाफों में भी,
छुपा हुआ एक इंतज़ार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है..........

मेरे चार दिन रोने के बाद,
पापा ने जो दी थी,
वो रुकी हुई घड़ी,
दादाजी की डायरी
से चुराई गयी,
वो सूखी स्याही
वाला कलम,मिला है,
दादी ने जो पहले जन्मदिन पे
दिया था वो श्रृंगार
मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है........

कई बरस बीत गए
आज यूँ महसूस हुआ,
रिश्तों को निभाने की
दौड़ में
भूल गये थे जिसे,
यूँ लगा जैसे वही बिछड़ा
पुराना यार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है..........

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर अपना पुराना इतवार मिला!"

माना की आपसे रोज मुलाक़ात नहीं होती

माना की आपसे रोज मुलाक़ात नहीं होती
आमने-सामने कभी बात नहीं होती
मगर हर सुबह आपको दिलसे याद कर लेते है
उसके बिना हमारे दिन की शुरुआत नहीं होती........
㊗कई बार ये सोच के दिल मेरा रो देता है
कि उसे पाने की चाहत में मैंने खुद को भी खो दिया...........
किधर है बर्के-सोजां काश यह हसरत भी मिट जाती,
बनायें तिनके चुन-चुनकर हम अपना आशियाँ कब तक..........
वो करीब ही न आये तो इज़हार क्या करते
खुद बने निशाना तो शिकार क्या करते
मर गए पर खुली रखी आँखें
इससे ज्यादा किसी का इंतजार क्या करते.........
भीगते रहते है,
किसी कि यादो में अक्सर
कभी मांगी किसी से
पनाह नहीं
हसरते पूरी न हो तो न सही ख्वाब देखना
कोई गुनाह तो नहीं.........
धीरे धीरे से तो हम भी तेरा दिल चुरा सकते है पगली
मगर माँ कहती है चोरी करना बुरी बात है........
अब ग़ज़ल के सारे मिसरे
तेरे चेहरे हो गए
ऊँगलियाँ तूने रखी तो
सब सुनहरे हो गए
रोशनी सूरज से हमने
फिर कभी माँगी नहीं
एक मुस्काने से तेरे
कम अँधेरे हो गए
चाहा था इतना ही बस
देखें तुझे हम रात दिन
हर गली हर मोड़ पर
आँखों के पहरे हो गए
हम सजाते ही रहे
चेहरे को अपने उम्र भर
जाने कब आँखों के नीचे
दाग़ गहरे हो गए.......
तुझे भूल जाना नहीं मुमकीन मत कर इसका तकाजा,
आंखे अंधी भी हो जाए तो आंसु बहाना नहीं छोडती......
उनकी चाल ही काफी थी इस दिल के होश उड़ाने के लिए
अब तो हद हो गई जब से वो पाँव में पायल पहनने लगे......
जान जब प्यारी थी
तब दुश्मन हज़ारों थे
अब मरने का शौक है तो क़ातिल नहीं मिलते......

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

ज़िन्दगी एक सफ़र है,

एक ट्रक के पीछे एक
बड़ी अच्छी बात लिखी देखी....

"ज़िन्दगी एक सफ़र है,आराम से चलते रहो
उतार-चढ़ाव तो आते रहेंगें, बस गियर बदलते रहो"
"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
और
जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!

तज़ुर्बा है हमारा... . .. मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!

तेरा एहसान हम कभी चुका नहीं सकते

तेरा एहसान हम कभी चुका नहीं सकते;
तू अगर माँगे जान तो इंकार कर नहीं सकते;
माना कि ज़िंदगी लेती है इम्तिहान बहुत;
तू अगर हो हमारे साथ तो हम कभी हार नहीं सकते।