मुझे मालूम था था की वो रास्ते मेरी मंजिल तक नहीँ जाते थे, फिर भी मै चलता रहा क्योंकि उस राह में कुछ अपनों के घर भी आते थे।
न रुकी वक्त की गर्दिश और न ही जमाना बदला...
जब पेड़ सूखा तो परिन्दों ने भी अपना ठिकाना बदल लिया....
कुछ मजबूरीयाँ भी होती है, घर से निकलने की,
राह में घूमता हर शख्स "आवारा" नही होता...!!!
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