बुधवार, 4 नवंबर 2015

माना की आपसे रोज मुलाक़ात नहीं होती

माना की आपसे रोज मुलाक़ात नहीं होती
आमने-सामने कभी बात नहीं होती
मगर हर सुबह आपको दिलसे याद कर लेते है
उसके बिना हमारे दिन की शुरुआत नहीं होती........
㊗कई बार ये सोच के दिल मेरा रो देता है
कि उसे पाने की चाहत में मैंने खुद को भी खो दिया...........
किधर है बर्के-सोजां काश यह हसरत भी मिट जाती,
बनायें तिनके चुन-चुनकर हम अपना आशियाँ कब तक..........
वो करीब ही न आये तो इज़हार क्या करते
खुद बने निशाना तो शिकार क्या करते
मर गए पर खुली रखी आँखें
इससे ज्यादा किसी का इंतजार क्या करते.........
भीगते रहते है,
किसी कि यादो में अक्सर
कभी मांगी किसी से
पनाह नहीं
हसरते पूरी न हो तो न सही ख्वाब देखना
कोई गुनाह तो नहीं.........
धीरे धीरे से तो हम भी तेरा दिल चुरा सकते है पगली
मगर माँ कहती है चोरी करना बुरी बात है........
अब ग़ज़ल के सारे मिसरे
तेरे चेहरे हो गए
ऊँगलियाँ तूने रखी तो
सब सुनहरे हो गए
रोशनी सूरज से हमने
फिर कभी माँगी नहीं
एक मुस्काने से तेरे
कम अँधेरे हो गए
चाहा था इतना ही बस
देखें तुझे हम रात दिन
हर गली हर मोड़ पर
आँखों के पहरे हो गए
हम सजाते ही रहे
चेहरे को अपने उम्र भर
जाने कब आँखों के नीचे
दाग़ गहरे हो गए.......
तुझे भूल जाना नहीं मुमकीन मत कर इसका तकाजा,
आंखे अंधी भी हो जाए तो आंसु बहाना नहीं छोडती......
उनकी चाल ही काफी थी इस दिल के होश उड़ाने के लिए
अब तो हद हो गई जब से वो पाँव में पायल पहनने लगे......
जान जब प्यारी थी
तब दुश्मन हज़ारों थे
अब मरने का शौक है तो क़ातिल नहीं मिलते......

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