मुलाकातें नहीं मुमकिन ...मुझे अहसास है.. लेकिन ,
तुम्हें मैं याद करता हूँ .. बस इतना याद तुम ऱखना .... !!
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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015
मुलाकातें नहीं मुमकिन
सोमवार, 19 अक्तूबर 2015
मिर्ज़ा ग़ालिब रिटर्न्स
मिर्ज़ा ग़ालिब रिटर्न्स फुल्ली डेडिकेटेड टू मोदीजी.....
अजीब कशमकश में गुज़र रही ज़िन्दगी ग़ालिब,
दाल खा नहीं सकते और गोश्त खाने नहीं देते..
ऊपर से शौचालय पर शौचालय बनवाये जा रहे हैं!
बाकी सब कुछ मिट्टी मिट्टी ।
वेख फरीदा मिट्टी खुली(Qabar)
मिट्टी उठाए मिट्टी ढुली (Laash)
मिट्टी हंसे मिट्टी रोये (insan)
अंत मिट्टी दा मिट्टी होवे (Jism)
ना कर बंदिया मेरी मेरी
ना आए तेरी ना आए मेरी
चार दिन दा मेला दुनिया
फिर मिट्टी दी बन गई ढेरी
ना कर एत्थे हेराफेरी
मिट्टी नाल ना धोखा कर तु
तु भी मिट्टी वो भी मिट्टी
जात पात दी गल ना कर तु
जात भी मिट्टी पात भी मिट्टी
जात सिर्फ खुदा दी ऊँची
बाकी सब कुछ मिट्टी मिट्टी ।।
तुम बेवफा नहीं
तुम बेवफा नहीं यह तो धड़कनें भी कहती हैं,
अपनी मजबूरियों का एक पैगाम तो भेज देते ..
उसने इस कमाल से खेली इश्क़ की बाज़ी,
मैं अपनी फतह समझता रहा मात होने तक…
कहाँ से लाऊ मैं वो लफ्ज़ एहसासों के
कहने लगी है अब तो मेरी तनहाई भी मुझसे……
मुझसे ही कर लो मोहब्बत मे बेवफा नहीं……
कहाँ से लाऊ मैं वो लफ्ज़ एहसासों के ।
जो दिखा दे तुझे जख्म मेरे दिल के ।
सिर्फ तूने ही कभी मुझको अपना न समझा ,जमाना तो आज भी मुझे तेरा दीवाना कहता है..
जो पूरा न हो सका.. वो किस्सा हूँ मै...
ये कह कह के हम दिल को समझा रहे है
वो अब चल चुके,वो अब आ रहे है..
मुझको क्या हक , मैं किसी को मतलबी कहूँ । मै खुद ही ख़ुदा को मुसीबत में याद करता हूं..
हमारे मनाने की अदा इतनी हसीं होगी की तुम उम्र भर रूठे रहने को कोशिश करोगी..
जो पूरा न हो सका.. वो किस्सा हूँ मै...
छूटा हुआ ही सही.. तेरा हिस्सा हूँ मै..!!
वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह
बच न सका ख़ुदा भी मोहब्बत के तकाज़ों से,
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला..
ये मुस्कुराता चेहरा, ये लफ़्जो की शरारत, ये शायरना अन्दाज,,,
कौन कहता है मोहब्बत दिखाई नही देती !!
वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह
जैसे रात में फूलों पे गिरती हैं शबनम
जैसे शमा से मिलते हैं मासूम परवाने
जैसे दिल की साज पे छेडे कोई सरगम