जिनकी आंखें आंसू से नम नहीं
क्या समझते हो उसे कोई गम नहीं
तुम तड़प कर रो दिये तो क्या हुआ
गम छुपा के हंसने वाले भी कम नहीं
मेरा यूँ टुटना और टूटकर बिखर जाना
कोई इत्फाक नहीं
....
किसी ने बहुत कोशिश की है
मुझे इस हाल तक पहुँचाने में.
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जिनकी आंखें आंसू से नम नहीं
क्या समझते हो उसे कोई गम नहीं
तुम तड़प कर रो दिये तो क्या हुआ
गम छुपा के हंसने वाले भी कम नहीं
मेरा यूँ टुटना और टूटकर बिखर जाना
कोई इत्फाक नहीं
....
किसी ने बहुत कोशिश की है
मुझे इस हाल तक पहुँचाने में.
खुदा जाने कौनसा गुनाह कर बैठे हैं हम।
तमन्नाओं वाली उम्र में तज़ुर्बे मिल रहे हैं।।
छोड दिया है किस्मत की लकीरों पर यकीन करना;
जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज है
मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
बशीर बद्र
यूँ तो बातें बहुत सारी है
कहने को, लेकिन…
चलो आज देर तक,
खामोशियों को सुनते है..
जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं,
अपना "शहर" छोड़ने को !!
वरना कौन अपनी गली में,
जीना नहीं चाहता ।।।
हसरतें आज भी,
"खत" लिखती हैं मुझे,
बेखबर इस बात से कि,,
मैं अब अपने "पते" पर नहीं रहता !!!
एक वक्त ऐसा था..दोस्त बोलते थे-
"चलो,मिलकर कुछ प्लान बनाते हैं"
और अब बोलते है-"चलो मिलने का कोई प्लान बनाते है"
मशवरा तो देते रहते हो.. .....खुश रहा करो...
कभी कभी वजह भी दे दिया करो...
जब भी अच्छे की शुरूआत होती है थोडा दर्द होता है।
समन्दर मे मोती यूं ही किनारे पर नही मिलता है...!!
इतनी धूल और सीमेंट है
शहरों की हवाओं में आजकल.
.
कब दिल पत्थर का हो जाता है
पता ही नहीं चलता…..
दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले,
हम अपने बुज़ुर्गों का ज़माना नहीं भूले,
तुम आँखों की बरसात बचाये हुये रखना,
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले,
मुझे मालूम था था की वो रास्ते मेरी मंजिल तक नहीँ जाते थे, फिर भी मै चलता रहा क्योंकि उस राह में कुछ अपनों के घर भी आते थे।
न रुकी वक्त की गर्दिश और न ही जमाना बदला...
जब पेड़ सूखा तो परिन्दों ने भी अपना ठिकाना बदल लिया....
कुछ मजबूरीयाँ भी होती है, घर से निकलने की,
राह में घूमता हर शख्स "आवारा" नही होता...!!!