"हम तो यु ही बेखुदी में कह दिए,
की हमें कोई याद नहीं करते,
जिसका हो आप जैसा प्यारा दोस्त,
वो कभी खुदा से भी फरियाद नहीं करते."
खुदा ने पूछा क्या सजा दूँ
उस बेफ़वा को...
दिल से आवाज़ आई
मोहब्बत हो जाये उसे भी..
अपने कर्म से वो मेरा मुक़द्दर बना गए, एक क़तरे को पल में समुन्दर बना गए, फूलों से भी ज्यादा नरम था, कभी दिल ये मेरा, इतना तड़पाया उसने कि पत्थर बना गए...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें