गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

मंज़र

कितने दर्दनाक थे वो मंज़र, जब हम बिछड़े थे,
उसने कहा था जीना भी नहीं और रोना भी नहीं..

कितनी मजबूरियाँ हम पलकोँ पे सजा लेते हैँ.....।
हम कहाँ रोते हैँ, हालात रूला देते हैँ.....।।

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