शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

माँ

माँ

लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो कभी ख़फ़ा नहीं होती
#
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
#
मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना
#
ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया
#
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई
#
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
#
अभी ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
#

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

मेरी खामोशी ,मेरे अपने गमो से है...


मेरी खामोशी ,मेरे अपने गमो से है...

तेरे गमो से तो मै जान से ही जाता.

आ गया था उनके होठों पर तबस्सुम ख्वाब में,
वर्ना इतनी दिलकशी कब थी, शबे-माहताब में....

सुना है तुम तक़दीर देखने का हुनर रखते हो,
मेरा हाथ देखकर बताना,पहले तुम आओगे या मौत.

हम नहीं सीख पा रहे है ये तेरे शहर का रिवाज

जिस से काम निकल जाए उसे ज़िन्दगी से निकाल दो....

हर जुर्म पे उठती है उँगलियाँ मेरी तरफ,

क्या मेरे सिवा शहर में मासूम है सारे....?

में खुद को सम्भाल लूंगा तेरे जाने के बाद

बस यही मेरा मुझको गुमान ले डूबा....

मेरा हक तो नही है फिर भी ये तुमसे कहते हे
हमारी जिंदगी ले लो मगर उदास मत रहा करो....

इश्क ने कब इजाजत ली है

आशिक़ों से वो होता है और होकर ही रहता है..!

खामोशी बयां कर देती है सब कुछ,

जब दिल का रिश्ता जुड जाता है किसी से...!्या होगी....

कमी नहीं हैं

सुनने की आदत डालो क्योंकि
ताने मारने वालों की कमी नहीं हैं।
मुस्कराने की आदत डालो क्योंकि
रुलाने वालों की कमी नहीं हैं
ऊपर उठने की आदतडालो क्योंकि
टांग खींचने वालों की कमी नहीं है…
प्रोत्साहित करने की आदत डालो क्योंकि
हतोत्साहित करने वालों की कमी नहीं ह

" बड़ा महत्त्व  है "

" बड़ा महत्त्व  है "
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ससुराल में साली का
बाग  में  माली     का
होठों  में  लाली    का
पुलिस में  गाली   का
मकान  में  नाली   का
कान   में   बाली   का
पूजा   में   थाली   का
खुशी  में  ताली   का.... बड़ा महत्त्व है...
:
फलों  में  आम  का
भगवान में  राम  का
मयखाने में  जाम का
फैक्ट्री  में  काम  का
सुर्खियों में  नाम  का
बाजार  में  दाम  का
मोहब्बत में शाम  का....... बड़ा महत्त्व है.
व्यापार  में  घाटा  का
लड़ाई  में  चांटा   का
रईसों  में   टाटा   का
जूत्तों  में  बाटा   का..... बड़ा  महत्त्व  है

फिल्म  में  गाने  का
झगड़े   में  थाने  का
प्यार   में  पाने    का
अंधों   में  काने   का
परिंदों  में  दाने   का........ बड़ा  महत्त्व है

जिंदगी में मोहब्बत का
परिवार में इज्जत का
तरक्की में किस्मत का
दीवानों में हसरत  का....... बड़ा महत्त्व है

पंछियों में बसेरे  का
दुनिया में सवेरे   का
डगर   में  उजेरे  का
शादी  में  फेरे   का...... बड़ा महत्त्व  है

खेलों  में  क्रिकेट   का
विमानों में   जेट    का
शरीर    में   पेट   का
दूरसंचार में  नेट  का...... बड़ा महत्त्व है

मौजों  में  किनारों का
गुर्वतों  में  सहारों   का
दुनिया  में  नजारों का
प्यार   में   इशारों  का...... बड़ा महत्त्व है

खेत  में  फसल   का
तालाब में कमल  का
उधार  में  असल  का
परीक्षा में  नकल  का..... बड़ा महत्त्व है

ससुराल में जमाई का
परदेश  में  कमाई का
जाड़े  में  रजाई   का
दूध   में  मलाई  का........ बड़ा महत्त्व है

बंदूक  में  गोली   का
पूजा   में  रोली  का
समाज में बोली  का
त्योहारों में होली का
श्रृंगार में रूप का....... बड़ा महत्त्व है

बारात  में  दूल्हे  का
रसोई  में  चूल्हे  का..... बड़ा महत्त्व है

सब्जियों में  आलू का
बिहाऱ   में   लालू  का
मशाले में   बालू   का
जंगल   में  भालू  का
बोलने   में  तालू  का..... बड़ा महत्त्व है

मौसम में सामण  का
घर   में   आँगण  का
दुआ  में  माँगण   का
लंका  में  रावण   का..... बड़ा महत्त्व है

चमन  में  बहार   का
डोली  में  कहार   का
खाने   में  अचार  का
मकान में  दीवार  का...... बड़ा महत्त्व है

सलाद  में   मूली  का
फूलों    में  जूली   का
सजा   में  सूली   का
स्टेशन  में  कूली  का...... बड़ा महत्त्व है

पकवानों  में  पूरी  का
रिश्तों  में    दूरी   का
आँखों  में   भूरी   का
रसोई   में   छूरी   का........ बड़ा महत्त्व है

माँ    की   गोदी  का
देश   में     मोदी  का...... बड़ा महत्त्व है

खेत  में   सांप  का
सिलाई में  नाप  का
खानदान में बाप का  .........

प्रकृति हमारी कितनी प्यारी

प्रकृति हमारी कितनी प्यारी,
सबसे अलग और सबसे न्यारी,
देती है वो सबको सीख,
समझे जो उसे नजदीक,
पेड़,पौधे,नदी,पहाड़,
बनाए सुंदर ये संसार।

प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना हमारा धर्म है।

श्रमिक अपने श्रम से, वणिक अपने व्यापार से, चिंतक अपने चिंतन से, लेखक अपने लेखन से, क्षत्रीय अपने शौर्य से प्रकृति व पर्यावरण की रक्षा करें। प्रकृति बिना जीवन अधूरा है।

भगवान् श्रीकृष्ण के प्रकृति और पशु प्रेम को समझते हुए,
इनके संरक्षण में अपना सक्रिय योगदान देने का प्रयास करना हमारा परम कर्तव्य है।

रविवार, 15 नवंबर 2015

क्या बात है

"क्या बात है"

जिंदगी तो ऐसे चलती रहेगी
मगर, कुछ अलग हो जाये तो
         "क्या बात है"
हम अपनी जिंदगी में भरते रंग तरह तरह के हर जगह ,मगर 
किसी और कि जिंदगी में रंगोली बना जाये तो
          "क्या बात है"
नहीं कहना मुझे कुछ किसी से कभी मगर,कोई बिना कहे सब कुछ समझ जाये तो
         "क्या बात है"
काफी जाने पहचाने चेहरे मिलते हैं मुझे रोज यहाँ मगर ,
अचानक से कोई अनजान चेहरा मेरे सामने आके मुस्करा जाए तो   "क्या बात है"
जिता है हर कोई खुद के लिए यहाँ मगर, कोई जिंदादिल किसी और के लिए दफ़न हो जाये तो  "क्या बात है"
ऐसे तो कुछ लिखना मुझे आता नहीं मगर, ये लिखा हुआ आपको पसंद आ जाये तो    "क्या बात है"

शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

ख़्वाहिशों से नहीं गिरते महज़ फूल झोली में,

ख़्वाहिशों से नहीं गिरते महज़ फूल झोली में,
कर्म की शाख को हिलाना होगा।
न होगा कुछ कोसने से अंधेरें को,
अपने हिस्से का 'दीया खुद ही जलाना होगा।
पर्व है पुरुषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का,
देहरी पर दीप एक जलता रहे,
अंधकार से युद्ध यह चलता रहे,
हारेगी हर बार अंधियारे की
घोर-कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की
स्वर्ण-लालिमा,
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,
कायम रहे इसका अर्थ, वरना
व्यर्थ है,
आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए!!
झिलमिल रोशनी में निवेदित
अविरल शुभकामना
आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगल भावना!!!
"शुभ दीपावली"

शनिवार, 7 नवंबर 2015

कुछ रूठे हुए लम्हें

कुछ रूठे हुए लम्हें कुछ टूटे हुए रिश्ते हर कदम पर काँच बन कर जख्म देते है !!

मौसम की तरह बदलते हें उसके वादे..
उपर से ये ज़िद के तुम मुझपे एतबार करो..

अगर दिल टूटे तो मेरे पास चले आना...

अगर दिल टूटे तो मेरे पास चले आना...!!
मुझे बिखरे हुए लोगो से मोहब्बत बहूत है...!!

याद करने की हम ने हद कर दी मगर,
भूल जाने में तुम भी कमाल करते हो..

मेरा यूँ टुटना और टूटकर बिखर जाना

मेरा यूँ टुटना और टूटकर बिखर जाना
कोई इत्फाक नहीं....
किसी ने बहुत कोशिश की है
मुझे इस हाल तक पहुँचाने में.

तकदीर ने यह कहकर, बङी तसल्ली दी है मुझे
कि वो लोग तेरे काबिल ही नहीं थे,जिन्हें मैंने
दूर किया है..!!

जिनकी आंखें आंसू से नम नही

जिनकी आंखें आंसू से नम नहीं
क्या समझते हो उसे कोई गम नहीं
तुम तड़प कर रो दिये तो क्या हुआ
गम छुपा के हंसने वाले भी कम नहीं

मेरा यूँ टुटना और टूटकर बिखर जाना
कोई इत्फाक नहीं ....
किसी ने बहुत कोशिश की है
मुझे इस हाल तक पहुँचाने में.

खुदा जाने कौनसा गुनाह कर बैठे हैं हम।

खुदा जाने कौनसा गुनाह कर बैठे हैं हम।
तमन्नाओं वाली उम्र में तज़ुर्बे मिल रहे हैं।।

छोड दिया है किस्मत की लकीरों पर यकीन करना;

जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज है

मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ

बशीर बद्र

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

खामोशियों को सुनते है..

यूँ तो बातें बहुत सारी है
कहने को, लेकिन…
चलो आज देर तक,
खामोशियों को सुनते है..

अपना "शहर" छोड़ने को !!

जिम्मेदारियां मजबूर कर देती हैं,
अपना "शहर" छोड़ने को !!

वरना कौन अपनी गली में,
जीना नहीं चाहता ।।।

हसरतें आज भी,
"खत" लिखती हैं मुझे,

बेखबर इस बात से कि,,
मैं अब अपने "पते" पर नहीं रहता !!!

एक वक्त ऐसा था..दोस्त बोलते थे-
"चलो,मिलकर कुछ प्लान बनाते हैं"

और अब बोलते है-"चलो मिलने का कोई प्लान बनाते है"

कब दिल पत्थर का हो जाता ह

मशवरा तो देते रहते हो.. .....खुश रहा करो...

कभी कभी वजह भी दे दिया करो...

जब भी अच्छे की शुरूआत होती है थोडा दर्द होता है।
समन्दर मे मोती यूं ही किनारे पर नही मिलता है...!!

इतनी धूल और सीमेंट है
शहरों की हवाओं में आजकल.
.
कब दिल पत्थर का हो जाता है
पता ही नहीं चलता…..

दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले

दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले,
हम अपने बुज़ुर्गों का ज़माना नहीं भूले,
तुम आँखों की बरसात बचाये हुये रखना,
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले,

वक्त की गर्दिश

मुझे मालूम था था की वो रास्ते  मेरी मंजिल तक नहीँ जाते थे,  फिर भी मै चलता रहा क्योंकि उस राह में कुछ अपनों के घर भी आते थे।

न रुकी वक्त की गर्दिश और न ही जमाना बदला...

जब पेड़ सूखा तो परिन्दों ने भी अपना ठिकाना बदल लिया....

कुछ मजबूरीयाँ भी होती है, घर से निकलने की,

राह में घूमता हर शख्स "आवारा" नही होता...!!!

बुधवार, 4 नवंबर 2015

पुराना इतवार

Gulzaar Sahib

"आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर पुराना इतवार मिला है.........

जाने क्या ढूँढने खोला था
उन बंद दरवाजों को,
अरसा बीत गया सुने,
उन धुंधली आवाजों को,
यादों के सूखे बागों में,
जैसे एक गुलाब खिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला है........

कांच के एक डिब्बे में कैद,
खरोचों वाले कुछ कंचे,
कुछ आज़ाद इमली के दाने,
इधर उधर बिखरे हुए,
मटके का इक चौकोर,
लाल टुकड़ा,
पड़ा बेकार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है......

एक भूरे रंग की पुरानी कॉपी,
नीली लकीरों वाली,
कुछ बहे हुए नीले अक्षर
उन पुराने भूरे पन्नों में,
स्टील के जंग लगे, शार्पनर में,पेंसिल का,
एक छोटा टुकड़ा गिरफ्तार मिला है।

आज मुझे उस बूढी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है...

बदन पर मिट्टी लपेटे
एक गेंद पड़ी है,
लकड़ी का एक बल्ला
भी है,
जो नीचे से छिला
छिला है,
बचपन फिर से आकर
मानो साकार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है.........

एक के ऊपर एक पड़े,
माचिस के कुछ खाली डिब्बे,
बुना हुआ एक
फटा सफ़ेद स्वेटर,
जो अब नीला नीला है,
पीला पड़ चुका झुर्रियों वाला
एक अखबार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है.........

गत्ते का एक चश्मा है,
पीली प्लास्टिक वाला,
चंद खाली लिफ़ाफ़े,
बड़ी बड़ी डाक टिकिटों वाले,
उन खाली पड़े लिफाफों में भी,
छुपा हुआ एक इंतज़ार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है..........

मेरे चार दिन रोने के बाद,
पापा ने जो दी थी,
वो रुकी हुई घड़ी,
दादाजी की डायरी
से चुराई गयी,
वो सूखी स्याही
वाला कलम,मिला है,
दादी ने जो पहले जन्मदिन पे
दिया था वो श्रृंगार
मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है........

कई बरस बीत गए
आज यूँ महसूस हुआ,
रिश्तों को निभाने की
दौड़ में
भूल गये थे जिसे,
यूँ लगा जैसे वही बिछड़ा
पुराना यार मिला है।

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर,
पुराना इतवार मिला
है..........

आज मुझे उस बूढ़ी अलमारी के अन्दर अपना पुराना इतवार मिला!"

माना की आपसे रोज मुलाक़ात नहीं होती

माना की आपसे रोज मुलाक़ात नहीं होती
आमने-सामने कभी बात नहीं होती
मगर हर सुबह आपको दिलसे याद कर लेते है
उसके बिना हमारे दिन की शुरुआत नहीं होती........
㊗कई बार ये सोच के दिल मेरा रो देता है
कि उसे पाने की चाहत में मैंने खुद को भी खो दिया...........
किधर है बर्के-सोजां काश यह हसरत भी मिट जाती,
बनायें तिनके चुन-चुनकर हम अपना आशियाँ कब तक..........
वो करीब ही न आये तो इज़हार क्या करते
खुद बने निशाना तो शिकार क्या करते
मर गए पर खुली रखी आँखें
इससे ज्यादा किसी का इंतजार क्या करते.........
भीगते रहते है,
किसी कि यादो में अक्सर
कभी मांगी किसी से
पनाह नहीं
हसरते पूरी न हो तो न सही ख्वाब देखना
कोई गुनाह तो नहीं.........
धीरे धीरे से तो हम भी तेरा दिल चुरा सकते है पगली
मगर माँ कहती है चोरी करना बुरी बात है........
अब ग़ज़ल के सारे मिसरे
तेरे चेहरे हो गए
ऊँगलियाँ तूने रखी तो
सब सुनहरे हो गए
रोशनी सूरज से हमने
फिर कभी माँगी नहीं
एक मुस्काने से तेरे
कम अँधेरे हो गए
चाहा था इतना ही बस
देखें तुझे हम रात दिन
हर गली हर मोड़ पर
आँखों के पहरे हो गए
हम सजाते ही रहे
चेहरे को अपने उम्र भर
जाने कब आँखों के नीचे
दाग़ गहरे हो गए.......
तुझे भूल जाना नहीं मुमकीन मत कर इसका तकाजा,
आंखे अंधी भी हो जाए तो आंसु बहाना नहीं छोडती......
उनकी चाल ही काफी थी इस दिल के होश उड़ाने के लिए
अब तो हद हो गई जब से वो पाँव में पायल पहनने लगे......
जान जब प्यारी थी
तब दुश्मन हज़ारों थे
अब मरने का शौक है तो क़ातिल नहीं मिलते......

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

ज़िन्दगी एक सफ़र है,

एक ट्रक के पीछे एक
बड़ी अच्छी बात लिखी देखी....

"ज़िन्दगी एक सफ़र है,आराम से चलते रहो
उतार-चढ़ाव तो आते रहेंगें, बस गियर बदलते रहो"
"सफर का मजा लेना हो तो साथ में सामान कम रखिए
और
जिंदगी का मजा लेना हैं तो दिल में अरमान कम रखिए !!

तज़ुर्बा है हमारा... . .. मिट्टी की पकड़ मजबुत होती है,
संगमरमर पर तो हमने .....पाँव फिसलते देखे हैं...!

तेरा एहसान हम कभी चुका नहीं सकते

तेरा एहसान हम कभी चुका नहीं सकते;
तू अगर माँगे जान तो इंकार कर नहीं सकते;
माना कि ज़िंदगी लेती है इम्तिहान बहुत;
तू अगर हो हमारे साथ तो हम कभी हार नहीं सकते।

सोमवार, 2 नवंबर 2015

मैंने एक फूल से कहा. ..!

एक चिन्तन :-
-----------

मैंने एक फूल से कहा. ..!
कल तुम मुरझा जाओगे
फिर क्यों मुस्कुराते हो?
व्यर्थ में
यह ताजगी किसलिए लुटाते हो?

फूल चुप रहा -
इतने में एक तितली आई
पल भर आनंद लिया,  उड गई,

एक भौंरा आया
गान सुनाया, सुगंध बटोरी,
और आगे बढ गया,

एक मधुमक्खी आई
पल भर भिनभिनाई
पराग समेटा,
और झूमती गाती चली गई,

खेलते हुए एक बालक ने
स्पर्श सुख लिया, रूप-लावण्य निहारा,
मुस्कुराया और खेलने लग गया|

तब फूल बोला-
|| मित्र ||
क्षण भर को ही सही
मेरे जीवन ने कितनों को सुख दिया

क्या तुमने भी कभी ऐसा किया?

कल की चिन्ता में
आज के आनंद में विराम क्यो करूँ!

माटी ने जो रूप,  रंग, रस, गंध दिए
उसे बदनाम क्यो करूँ!

मैं हँसता हूँ
क्योंकि हँसना मुझे आता है,

मैं खिलता हूँ
क्योंकि खिलना मुझे सुहाता है,

मैं मुरझा गया तो क्या
कल फिर एक नया फूल खिलेगा
न कभी मुस्कान रुकी हैं,
न......ही || सुगंध ||

जीवन तो एक सिलसिला है
इसी तरह चलेगा |

"जो आपको मिला है उस में खुश रहिये और प्रभु का शुक्रिया कीजिए क्योंकि आप जो जीवन जी रहे हैं वो जीवन कई लोगों ने देखा तक नहीं है । "

"खुश रहिये, मुस्कुराते रहिये और अपनों को भी खुश रखिए |"

रविवार, 1 नवंबर 2015

जमींन पे गिरी सिगरेट की राख बोली

Very nice and true lines

जमींन पे गिरी सिगरेट की राख बोली,
आज तेरी वजह से मेरी ये हालत हे,
कल मेरी वजह से तेरी ये हालत होगी..!

माचिस किसी दूसरी चीज
को जलानेसे पहले खुद
को जलाती हैं..!
गुस्सा भी एक माचिस की तरह है..!
यह दुसरो को बरबाद करने से पहले
खुद को बरबाद करता है!!!

आज का कठोर व कङवा सत्य !!
चार रिश्तेदार एक दिशा में
तब ही चलते हैं ,
जब पांचवा कंधे पर हो ।

"कीचड़ में पैर फंस जाये तो नल के पास जाना चाहिए
मगर.........
नल को देखकर कीचड़ में नही जाना चाहिए,
इसी प्रकार..
जिन्दगी में बुरा समय आ जाये तो....
पैसों का उपयोग करना चाहिए मगर........
पैसों को देखकर बुरे रास्ते पर नही जाना चाहिए."

रिश्तों की बगिया में एक रिश्ता नीम के पेड़ जैसा भी रखना;
जो सीख भले ही कड़वी देता हो पर
तकलीफ में मरहम भी बनता है.
';परिवर्तन से डरना और संघर्ष से कतराना,
मनुष्य की सबसे बड़ी कायरता है ।।

जीवन का सबसे बड़ा गुरु वक्त होता है,
क्योंकि जो वक्त सिखाता है वो कोई नहीं सीखा सकता..
बहुत ही सुन्दर वर्णन है 

मस्तक को थोड़ा झुकाकर देखिए....अभिमान मर जाएगा
आँखें को थोड़ा भिगा कर देखिए.....पत्थर दिल पिघल जाएगा
दांतों को आराम देकर देखिए.........स्वास्थ्य सुधर जाएगा
जिव्हा पर विराम लगा कर देखिए.....क्लेश का कारवाँ गुज़र जाएगा
इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिए......खुशियों का संसार नज़र आएगा

काश जिंदगी भी बदल जाती

पलटते किताब के सफ़होँ को देख के रश्क होता है...,
काश जिंदगी भी बदल जाती इसी रफ़्तार से...!!!

दोस्ती

" दोस्ती  "
सभी  करते  है  मगर ...
कुछ लोग  निभाते है ..
कुछ  लोग आझमाते है

बड़ी मुद्दत से चाहा है तुझे!

बड़ी मुद्दत से चाहा है तुझे!
बड़ी दुआओं से पाया है तुझे!
तुझे भुलाने की सोचूं भी तो कैसे!
किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे

ये सोचकर कि दरख़्तों में छांव होती ह

ये सोचकर कि दरख़्तों में छांव होती है
यहां बबूल के साये में आ के बैठ गए

फिर तेरी याद,

फिर तेरी याद, फिर तेरी तलव, फिर तेरी बातें, 
ऐसे लगता है ऐ दिल , तुझे मेरा सकून रास नही आता..!!!

गजब है इश्क ए-दस्तूर,

गजब है इश्क ए-दस्तूर,
साथ थे तो एक लफ्ज ना निकला 
लबों से मेरे,

दूर क्या हुए 
कलम ने कहर मचा दिया...!

वो अच्छे हे तो बेहतर

वो अच्छे हे तो बेहतर , बुरे हे तो भी कबूल ,

मिजाज़-ए-इश्क मैं ऐब-ओ-हुनर देखे नही जाते

जख्म है कि दिखते नही...

जख्म है कि दिखते नही...
मगर ये मत समझिए
कि दुखते नही.....!!

हमसफर

" हमसफर "
सभी  है  मगर ...
कोई  साथ  देता है  तो ...
कोई  छोड  देता है .....

दर्द

" दर्द "
सभी  इंसानो  मे है
मगर ...  
कोई  दिखाता है  तो ...
कोई  छुपाता है .....

अहसास

" अहसास  "
सबको  होता  है  मगर ...
कोई  मेहसूस  करता  है  तो ...
कोई  समज नही पाता

प्यार

" प्यार  "
सभी  करते  है  मगर ...
कोई  दिल  से  करता  है  तो ...
कोई  दिमाग  सें  करता  है

रिश्ता

" रिश्ता  "
कई लोगों  से  होता  है , मगर ...
कोई  प्यार  से  निभाता  है  तो ...
कोई  नफरत  से  निभाता  है ..

कुछ शेर

कौन कहता है मुसाफिर जख्मी नहीं होते,
रास्ते गवाह हैं,बस कमबख्त  गवाही नहीं देते

मेरा यही अंदाज ज़माने को खलता है..
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है

मेरा यही अंदाज ज़माने को खलता है..
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है

सुना है कि उसने खरीद लिया है, करोड़ो का घर शहर में...
मगर आँगन दिखाने वो, आज भी बच्चों को गाँव लाता है..

बचपन वाली दिवाली .....

बचपन वाली दिवाली .....

हफ्तों पहले से साफ़-सफाई में जुट जाते हैं
चूने के कनिस्तर में थोड़ी नील मिलाते हैं
अलमारी खिसका खोयी चीज़ वापस  पाते हैं
दोछत्ती का कबाड़ बेच कुछ पैसे कमाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं  ....

दौड़-भाग के घर का हर सामान लाते हैं
चवन्नी -अठन्नी  पटाखों के लिए बचाते हैं
सजी बाज़ार की रौनक देखने जाते हैं
सिर्फ दाम पूछने के लिए चीजों को उठाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

बिजली की झालर छत से लटकाते हैं
कुछ में मास्टर  बल्ब भी  लगाते हैं
टेस्टर लिए पूरे इलेक्ट्रीशियन बन जाते हैं
दो-चार बिजली के झटके भी  खाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

दूर थोक की दुकान से पटाखे लाते है
मुर्गा ब्रांड हर पैकेट में खोजते जाते है
दो दिन तक उन्हें छत की धूप में सुखाते हैं
बार-बार बस गिनते जाते है
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

धनतेरस के दिन कटोरदान लाते है
छत के जंगले से कंडील लटकाते हैं
मिठाई के ऊपर लगे काजू-बादाम खाते हैं
प्रसाद की  थाली   पड़ोस में  देने जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

माँ से खील में से  धान बिनवाते हैं
खांड  के खिलोने के साथ उसे जमके खाते है
अन्नकूट के लिए सब्जियों का ढेर लगाते है
भैया-दूज के दिन दीदी से आशीर्वाद पाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

दिवाली बीत जाने पे दुखी हो जाते हैं 
कुछ न फूटे पटाखों का बारूद जलाते हैं
घर की छत पे दगे हुए राकेट पाते हैं
बुझे दीयों को मुंडेर से हटाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

बूढ़े माँ-बाप का एकाकीपन मिटाते हैं
वहीँ पुरानी रौनक फिर से लाते हैं
सामान  से नहीं ,समय देकर सम्मान  जताते हैं
उनके पुराने सुने किस्से फिर से सुनते जाते हैं
चलो इस दफ़े दिवाली घर पे मनाते हैं ....

मुद्दत गुज़र जाती है

मुद्दत गुज़र जाती है अपनों को
अपना बनाने में,
वक़्त यूं ही गुज़र जाता है बस
मुश्किलें सुलझाने में...
कभी लगता है कि #दुनिया में सभी
तो अपने हैं,
मगर #जिंदगी सिमट जाती है
रिश्तों को निभाने में...

तेरी निगाह से ऐसी शराब पी मैने

तेरी निगाह से ऐसी शराब पी मैने
कि फिर न होश का दावा किया कभी मैने।
वो और होंगे जिन्हें मौत आ गई होगी,
निगाह-ए-यार से पाई है ज़िंदगी मैने।

ऐ गम-ए-ज़िंदगी कुछ तो दे मशवरा,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।
मैं कहाँ जाऊँ - होता नहीं फैसला,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

एक तरफ़ बाम पर कोई गुलफ़ाम है,
एक तरफ़ महफ़िल-ए-बादा-औ-जाम है,
दिल का दोनो से है कुछ न कुछ वास्ता,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

उसके दर से उठा तो किधर जाऊँगा,
मयकदा छोड़ दूँगा तो मर जाऊँगा,
सख्त मुश्किल में हूँ- क्या करूँ ऐ खुदा,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

ज़िंदगी एक है और तलबगार दो,
जां अकेली मगर जां के हकदार दो,
दिल बता पहले किसका करूँ हक़ अदा,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

इस ताल्लुक को मैं कैसे तोड़ूँ ज़फ़र,
किसको अपनाऊँ मैं, किसको छोड़ूँ जफ़र,
मेरा दोनों से रिश्ता है नजदीक का,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

ऐ गम-ए-ज़िंदगी कुछ तो दे मशवरा,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।
मैं कहाँ जाऊँ - होता नहीं फैसला,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

वो मेरा रोनक-ए-महफिल कहाँ हैं

वो मेरा रोनक-ए-महफिल कहाँ हैं,
मेरी बिजली मेरा हासिल कहाँ है,
मुकाम उसका है दिल की खलवतों में,
खुदा जाने मुकाम-ए-दिल कहाँ है।

जिस दिन से जुदा वो हमसे हुए,
इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया, - 2
है चांद का मुह उतरा उतरा
तारों ने चमकना छोड़ दिया

वो पास हमारे रहते थे, बेरुत ही बहार आ जाती थी - 2
अब लाख बहारें आएँ तो क्या -2
फूलों ने महकना छोड़ दिया - 2

है चांद का मुह उतरा उतरा
तारों ने चमकना छोड़ दिया
इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया,

हमराह कोई साथी भी नहीं, अब याद कोई बांकी भी नहीं - 2
अब फूल खिले जख्मों के क्या - 2
आँखो ने बरसना छोड़ दिया - 2

है चांद का मुह उतरा उतरा
तारों ने चमकना छोड़ दिया
इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया,

हमने ये दुआ जब भी मांगी, तकदीन बदल दे ऐ मालिक - 2
आवाज ये आई के अब हमने - 2
तकदीन बदलना छोड़ दिया

है चांद का मुह उतरा उतरा
तारों ने चमकना छोड़ दिया
इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया।