रविवार, 1 नवंबर 2015

तेरी निगाह से ऐसी शराब पी मैने

तेरी निगाह से ऐसी शराब पी मैने
कि फिर न होश का दावा किया कभी मैने।
वो और होंगे जिन्हें मौत आ गई होगी,
निगाह-ए-यार से पाई है ज़िंदगी मैने।

ऐ गम-ए-ज़िंदगी कुछ तो दे मशवरा,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।
मैं कहाँ जाऊँ - होता नहीं फैसला,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

एक तरफ़ बाम पर कोई गुलफ़ाम है,
एक तरफ़ महफ़िल-ए-बादा-औ-जाम है,
दिल का दोनो से है कुछ न कुछ वास्ता,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

उसके दर से उठा तो किधर जाऊँगा,
मयकदा छोड़ दूँगा तो मर जाऊँगा,
सख्त मुश्किल में हूँ- क्या करूँ ऐ खुदा,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

ज़िंदगी एक है और तलबगार दो,
जां अकेली मगर जां के हकदार दो,
दिल बता पहले किसका करूँ हक़ अदा,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

इस ताल्लुक को मैं कैसे तोड़ूँ ज़फ़र,
किसको अपनाऊँ मैं, किसको छोड़ूँ जफ़र,
मेरा दोनों से रिश्ता है नजदीक का,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

ऐ गम-ए-ज़िंदगी कुछ तो दे मशवरा,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।
मैं कहाँ जाऊँ - होता नहीं फैसला,
एक तरफ़ उसका घर,एक तरफ़ मयकदा।

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