मेरी खामोशी ,मेरे अपने गमो से है...
तेरे गमो से तो मै जान से ही जाता.
आ गया था उनके होठों पर तबस्सुम ख्वाब में,
वर्ना इतनी दिलकशी कब थी, शबे-माहताब में....
सुना है तुम तक़दीर देखने का हुनर रखते हो,
मेरा हाथ देखकर बताना,पहले तुम आओगे या मौत.
हम नहीं सीख पा रहे है ये तेरे शहर का रिवाज
जिस से काम निकल जाए उसे ज़िन्दगी से निकाल दो....
हर जुर्म पे उठती है उँगलियाँ मेरी तरफ,
क्या मेरे सिवा शहर में मासूम है सारे....?
में खुद को सम्भाल लूंगा तेरे जाने के बाद
बस यही मेरा मुझको गुमान ले डूबा....
मेरा हक तो नही है फिर भी ये तुमसे कहते हे
हमारी जिंदगी ले लो मगर उदास मत रहा करो....
इश्क ने कब इजाजत ली है
आशिक़ों से वो होता है और होकर ही रहता है..!
खामोशी बयां कर देती है सब कुछ,
जब दिल का रिश्ता जुड जाता है किसी से...!्या होगी....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें